महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप
- प्रताप का जन्म 09 मई 1540 ई. कुम्भलगढ (राजसमंद ) में हुआ |
- प्रताप के बचपन का नाम " कीका " था |
- प्रताप के माता के नाम - जेवंता बाई तथा पिता का नाम उदयसिंह था |
- प्रताप का राज्यभिषेक 28 फरवरी 1572 ई. को गोगुन्दा में हुआ |
- प्रताप इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने एक ही वार में बेहलोल खाँ को घोड़े सहित बीच में से काट डाला
- हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के सेनापति मानसिंह के बीच 21 जून 1576 ई. में हुआ |
- यह युद्ध अनिर्णायक रहा ( प्रताप के समर्थकों ने प्रताप की जीत मानी तथा अकबर के समर्थकों ने अकबर की जीत मानी )
- महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी 1597 ई. धनुष की प्रतय्शां चढा़ते लगे घाव के कारण चावण्ड ( मेवाड़ ) में हुई थी |
मैं झुकूं कियां , है आण मनैं |
कुळ रा केसरिया बानां री ||
मैं बुझूं कियां , हूं सेस लपट |
आजादी रै परवानां री ||
जद राणा रो संदेश गयो , पीथळ री छाती दूणी ही |
हिंदवाणों सूरज चमकै हो , अकबर री दुनियां सूनी ही ||
(@कन्हैयालाल सेठिया )
आज महाराणा प्रताप की 482वीं जयंती पर आप सभी हार्दिक शुभकामनाएं |
@heera_sureshji_suthar
victory day 09 may
victory day (विजय दिवस )
-- "victory day" रसिया (रुस ) का अहम राष्ट्रीय त्यौहार के रुप में मनाया जाता है |
-- द्वितीय विश्व युद्ध के चलते हिटलर की सेना 'नाजी-जर्मनी' सोवियत संघ (रुस ) से युद्ध करने के लिए चली गई | लेकिन हिटलर को वहाँ का तापमान के बारे कुछ जानकारी नही थी | जिससे नाजीयों की टीम ने सोवियत संघ के सामने "09 मई " को समर्पण कर दिया |
- उस दिन से लेकर आज तक रुसी सैना प्रत्येक वर्ष की 09 मई को "victory day" ( विजय दिवस ) के रुप में मनाती है |
चर्चा विशेष कारण :- आज के दिन व्लादिमीर पुतीन युक्रेन क्राईसेस चलते को शायद आज रोक सकते हैं या युक्रेन को हरा सकते हैं |
@heera_sureshji_suthar
मातृ दिवस पर सुनील जोगी
जब आँख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था
उसका नन्हा-सा आँचल मुझको भूमण्डल से प्यारा था
उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों-सा खिलता था
उसके स्तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था
हाथों से बालों को नोचा, पैरों से खूब प्रहार किया
फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्यार किया
मैं उसका राजा बेटा था वो आँख का तारा कहती थी
मैं बनूँ बुढ़ापे में उसका बस एक सहारा कहती थी
उंगली को पकड़ चलाया था पढ़ने विद्यालय भेजा था
मेरी नादानी को भी निज अन्तर में सदा सहेजा था
मेरे सारे प्रश्नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी
मेरी राहों के काँटे चुन वो ख़ुद ग़ुलाब बन जाती थी
मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से इक रोग प्यार का ले आया
जिस दिल में माँ की मूरत थी वो रामकली को दे आया
शादी की, पति से बाप बना, अपने रिश्तों में झूल गया
अब करवाचौथ मनाता हूँ माँ की ममता को भूल गया
हम भूल गए उसकी ममता, मेरे जीवन की थाती थी
हम भूल गए अपना जीवन, वो अमृत वाली छाती थी
हम भूल गए वो ख़ुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी
हमको सूखा बिस्तर देकर ख़ुद गीले में सो जाती थी
हम भूल गए उसने ही होठों को भाषा सिखलाई थी
मेरी नींदों के लिए रात भर उसने लोरी गाई थी
हम भूल गए हर ग़लती पर उसने डाँटा-समझाया था
बच जाऊँ बुरी नज़र से काला टीका सदा लगाया था
हम बड़े हुए तो ममता वाले सारे बन्धन तोड़ आए
बंगले में कुत्ते पाल लिए माँ को वृद्धाश्रम छोड़ आए
उसके सपनों का महल गिरा कर कंकर-कंकर बीन लिए
ख़ुदग़र्ज़ी में उसके सुहाग के आभूषण तक छीन लिए
हम माँ को घर के बँटवारे की अभिलाषा तक ले आए
उसको पावन मंदिर से गाली की भाषा तक ले आए
माँ की ममता को देख मौत भी आगे से हट जाती है
गर माँ अपमानित होती, धरती की छाती फट जाती है
घर को पूरा जीवन देकर बेचारी माँ क्या पाती है
रूखा-सूखा खा लेती है, पानी पीकर सो जाती है
जो माँ जैसी देवी घर के मंदिर में नहीं रख सकते हैं
वो लाखों पुण्य भले कर लें इंसान नहीं बन सकते हैं
माँ जिसको भी जल दे दे वो पौधा संदल बन जाता है
माँ के चरणों को छूकर पानी गंगाजल बन जाता है
माँ के आँचल ने युगों-युगों से भगवानों को पाला है
माँ के चरणों में जन्नत है गिरिजाघर और शिवाला है
हिमगिरि जैसी ऊँचाई है, सागर जैसी गहराई है
दुनिया में जितनी ख़ुशबू है माँ के आँचल से आई है
माँ कबिरा की साखी जैसी, माँ तुलसी की चौपाई है
मीराबाई की पदावली ख़ुसरो की अमर रुबाई है
माँ आंगन की तुलसी जैसी पावन बरगद की छाया है
माँ वेद ऋचाओं की गरिमा, माँ महाकाव्य की काया है
माँ मानसरोवर ममता का, माँ गोमुख की ऊँचाई है
माँ परिवारों का संगम है, माँ रिश्तों की गहराई है
माँ हरी दूब है धरती की, माँ केसर वाली क्यारी है
माँ की उपमा केवल माँ है, माँ हर घर की फुलवारी है
सातों सुर नर्तन करते जब कोई माँ लोरी गाती है
माँ जिस रोटी को छू लेती है वो प्रसाद बन जाती है
माँ हँसती है तो धरती का ज़र्रा-ज़र्रा मुस्काता है
देखो तो दूर क्षितिज अंबर धरती को शीश झुकाता है
माना मेरे घर की दीवारों में चन्दा-सी मूरत है
पर मेरे मन के मंदिर में बस केवल माँ की मूरत है
माँ सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, अनुसूया, मरियम, सीता है
माँ पावनता में रामचरितमानस् है भगवद्गीता है
अम्मा तेरी हर बात मुझे वरदान से बढ़कर लगती है
हे माँ तेरी सूरत मुझको भगवान से बढ़कर लगती है
सारे तीरथ के पुण्य जहाँ, मैं उन चरणों में लेटा हूँ
जिनके कोई सन्तान नहीं, मैं उन माँओं का बेटा हूँ
हर घर में माँ की पूजा हो ऐसा संकल्प उठाता हूँ
मैं दुनिया की हर माँ के चरणों में ये शीश झुकाता हूँ
@sunil_jogi (youtube)
विश्व मातृ दिवस
विश्व मातृ दिवस (mother's day)
- मदर्स डे प्रत्येक वर्ष में मई माह के दूसरे रविवार को मनाया जाता हैं |
- मातृ दिवस मनाने का उद्देश्य " विश्व की सभी माताओं को सम्मान " देना |
- 16वीं सदी में इंग्लैंड का ईसाई समुदाय ईशू की माँ मदर मेरी को सम्मानित करने से इसकी शुरुआत हुई |
- 08 मई 1914 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति "वुडरो विलसन" ने मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाने की घोषणा की -
@heera_sureshji_suthar
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