Showing posts with label संगठन एवं प्रणाली ( पद्धति ) संभाग. Show all posts
Showing posts with label संगठन एवं प्रणाली ( पद्धति ) संभाग. Show all posts

संगठन एवं प्रणाली(पद्धति) संभाग

 संगठन एव प्रणाली का अर्थ - 

•प्रशासनिक सुधार विभाग का व्यापक अंग है |

•इसे 1955 में शासन सचिवालय में स्थापित किया गया

प्रशासकीय व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए संगठन एवं प्रणाली संभाग’ की स्थापना की जाती है । ‘संगठन’ व ‘प्रणाली’ दोनों शब्द एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं । इन दोनों का सम्मिलित उद्देश्य प्रशासनिक कार्य कुशलता एवं दक्षता में वृद्धि करना है ।


‘संगठन एवं प्रणाली संभाग’ की स्थापना से प्रशासनिक ढाँचे का पुनराव लोकन होता है तथा कार्य का सरलीकरण (Simplification) होता है । ओ. एण्ड. एम. इकाई विभिन्न विभागों की कार्य प्रणालियों का निरीक्षण व मूल्यांकन करती है तथा समस्याओं के निराकरण में अहम-भूमिका निभाती है ।


संगठन व प्रणाली अथवा ओ. एण्ड. एम. का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है-व्यापक एवं संकुचित अर्थ में । व्यापक अर्थ में इसका तात्पर्य ‘संगठन’ (Organization) एवं ‘प्रबन्ध’ (Management) से है । इसमें प्रबन्ध का सभी प्रक्रियाएँ यथा नियोजन, संगठन, संचालन, निदेशन, समन्वय आदि सभी सम्मिलित हो जाती हैं । )

संगठन एवं प्रणाली’ संभाग निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु स्थापित किया जाता है:


(1) प्रशासन में व्याप्त दोषों की छानबीन (Enquiry into the Defects of Administration):


संगठन व प्रणाली संभाग दो प्रकार की व्यवस्थाओं के साथ कार्य करता है-निषेधात्मक तथा सकारात्मक । निषेधात्मक (Negative) व्यवस्था के अन्तर्गत यह संभाग स्वयं को केवल प्रशासनिक दोषों की छानबीन तक सीमित रखता है । सकारात्मक (Positive) व्यवस्था के अन्तर्गत यह उन दोषों को दूर करने की आवश्यकता पर बल देता है ।


(2) रुचि उत्पन्न करना (To Create Interest):


संगठन व प्रणाली संभाग संगठन के दोषों को जानने के बाद उन्हें दूर करके प्रशासकीय कार्यकुशलता लाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत करता है जिससे कर्मचारी वर्ग में अपने कार्यों के प्रति स्वाभाविक रुचि जाग्रत होती है ।


(3) मितव्ययिता का सुझाव (Suggestions for Minimum Expenditure):


यह संभाग संगठन में कार्यों के कुशल एवं दक्ष सम्पादन हेतु ऐसी विधियों का सुझाव देता है जिससे फिजूलखर्ची पर नियन्त्रण स्थापित होता है तथा मितव्ययिता बनी रहती है ।


(4) समय व श्रम की बचत (Saving of Time and Labour):


यह संभाग न केवल धन की बचत से सम्बन्धित सुझाव देता है वरन् ऐसी कार्यप्रणालियों को भी निर्दिष्ट करता है जिनका अनुकरण करके निश्चित रूप से समय व श्रम की भी बचत होती है ।


(5) कार्यक्षमता में वृद्धि (To Increase the Efficiency):



संगठन व प्रणाली संभाग का सकारात्मक उद्देश्य विभाग में व्याप्त दोषों के निराकरण सम्बन्धी सुझाव देने के अतिरिक्त ऐसे सुझाव देना भी है जिनसे कार्य क्षमता में आवश्यक रूप से वृद्धि होती है ।


3. संगठन एवं प्रणाली संभाग के कार्य (Functions of Organization and Method):


उपर्युक्त वर्णित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु ‘संगठन व प्रणाली संभाग’ निम्नलिखित कार्य करता है:


(1) पुरानी कार्यविधियाँ जो कि अनुपयोगी हो गयी हैं उनको अस्वीकृत करता है तथा शोध आदि के आधार पर नई विधियों से सम्बन्धित सुझाव देता है ।


(2) अभिलेख या रिकॉर्ड रखने से सम्बन्धित सुझाव देना ।


(3) प्रशासकीय प्रक्रियाओं के सरलीकरण से सम्बन्धित सुझाव देना ।


(4) कार्य विलम्ब के कारणों की खोज करना तथा उनके सन्तुलन के सुझाव देना ।


(5) प्रशासकीय कुशलता व द क्षता का निरन्तर विकास करना ।


(6) विभिन्न विभागों के मध्य आदान-प्रदान की व्यवस्था करते हुए समन्वयात्मक सम्बन्ध स्थापित करना ।


(7) लाल फीताशाही को नियन्त्रित करना तथा कर्मचारियों में चेतना जाग्रत करना


(8) एक सामान्य समाचार विभाग की स्थापना करना ।


4. संगठन व प्रणाली की तकनीकें (Techniques of O & M):


ओ. एण्ड एम. की कार्यकुशलता अथवा तकनीके निम्नवत् हैं:


(1) सर्वेक्षण (Survey):


सर्वेक्षण में सर्वप्रथम संगठन की वर्तमान स्थिति से सम्बन्धित तथ्यों का संकलन किया जाता है । इसके बाद समस्याओं के कारणों व समाधानों का पता लगाया जाता है । सर्वेक्षण हेतु निरीक्षण, साक्षात्कार एवं प्रश्नावली आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है ।


(2) निरीक्षण (Observation):


विश्लेषण विशेषज्ञ विभागीय अधिकारियों के कार्यालयों का निरीक्षण करते हैं कर्मचारियों के कार्यों की गुणवत्ता सुधारने के उपाय बताते हैं ।


(3) प्रपत्र नियन्त्रण (Form Control):


आधुनिक समय में शासन संचालन हेतु प्रपत्रों की आवश्यकता होती है । इन प्रपत्रों के माध्यम से कार्य-पद्धति को उत्तम बनाने का प्रयास किया जाता है । ओ. एण्ड एम. इन प्रपत्रों में सुधार लाने के लिये आवश्यक सुझाव देता है


(4) कार्य-माप (Work-Measurement):


इस विधि के द्वारा कार्यालय में सम्पन्न कार्यों एवं उन कार्यों को करने वाले व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है । यह देखा जाता है कि एक व्यक्ति अपना कार्य उचित विधि से एवं निश्चित अवधि में पूर्ण कर रहा है या नहीं ।


कार्य-माप की तीन पद्धतियाँ प्रचलित हैं:


(i) परीक्षण व त्रुटि विधि (Trail and Error Method),


(ii) सांख्यिकीय विधि (Statistical Method) तथा


(iii) समय अध्ययन विधि (Time Study Method) ।


(5) कार्य सरलीकरण (Work Simplification):


कार्य सरलीकरण का अर्थ है कार्य की कम थकाने वाली विधियों का विकास करना । डॉ. अवस्थी व माहेश्वरी के अनुसार- ”कार्य सरलीकरण ओ. एण्ड. एम. का हृदय है ।” लाल फीताशाही की समस्या का प्रत्यक्ष सम्बन्ध कार्य सरलीकरण से है ।


(6) स्वचालन (Automation):


स्वचालन के द्वारा विलम्ब सम्बन्धी समस्याओं का समाधान किया जाता है । इसमें अधिकांश कार्य मशीनों की सहायता से किये जाते हैं । स्वचालन की प्रक्रिया में विद्युद्णु संगणक (Electronic Computers) काम में लाये जाते हैं ।


(7) फाइलों की व्यवस्था (Filing System):


इसमें अभिलेखों को व्यवस्थित रूप में किया जाता है व्यवस्थित रूप में होने पर किसी भी अभिलेख या फाइल को खोजने में कठिनाई का अनुभव नहीं होता है । आवश्यकता के समय अभिलेख तुरन्त मिल जाते हैं तथा कार्यवाही में विलम्ब नहीं होता है ।


5. ओ. एण्ड एम. के लाभ व हानियाँ (Advantages and Disadvantages of O & M):


लाभ (Advantages):


ओ. एण्ड. एम. से होने वाले प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:


(1) ओ. एण्ड एम. में विशेषज्ञों के द्वारा प्रशासकीय कार्यों की समीक्षा की जाती है । इस प्रकार यह प्रशासनिक सुधार का एक महत्वपूर्ण साधन है ।


(2) यह प्रशासकीय कार्यालयों की कार्यविधि के दोषों को दूर कर उन्हें आधुनिक बनाने में सहयोग देता है ।


हानियाँ (Disadvantages):


ओ. एण्ड एम से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं:


(1) कर्मचारी अपने दायित्वों से विमुख होकर कार्यालय में जाँच पड़ताल के कार्य में संलग्न हो जाते हैं ।


(2) यद्यपि ओ एण्ड एम. स्टाफ कार्य है, किन्तु वे सूत्र अभिकरण (Line Agency) का कार्य करने लगते हैं ।


(3) प्रविधियों (Techniques) को अधिक महत्व दिया जाता है तथा मानवीय पक्ष की उपेक्षा की जाती है ।



 




 

6. भारत में ओ. एण्ड एम. (O & M in India):


स्वतन्त्रता के उपरान्त से भारत निरन्तर प्रयत्नशील है कि प्रशासनिक दक्षता किस प्रकार से प्राप्त की जाये तथा शासन को मितव्ययी बनाने के साथ-साथ अन्य सुधार किये जायें । इन्हीं प्रयासों के अन्तर्गत सर्वप्रथम सन् 1949 में गोपालास्वामी आयंगर ने तथा इसके बाद सन् 1951 में प्रो. ए. डी. गोरवाला ने प्रशासकीय संगठनों में ‘ओ. एण्ड एम संभाग’ स्थापित करने की सिफारिश की तदुपरान्त सन् 1952 में पॉल एच. एपिलबी ने भी इसी प्रकार की संस्तुति की ।


अन्तत: मार्च 1954 में केन्द्रीय सरकार के अधीन ‘संगठन व प्रणाली संभाग’ की स्थापना की गयी । केबिनेट सचिवालय में स्थित यह संभाग प्रधानमन्त्री के अधीन विभिन्न मन्त्रालयों एवं विभागों में आवश्यक प्रशासनिक सुधार करता है । सन् 1964 में गृह मन्त्रालय में प्रशासनिक सुधार आयोग की स्थापना के साथ ही ‘संगठन व प्रणाली संभाग’ को इसमें स्थानान्तरित कर दिया गया ।


वर्तमान भारतीय प्रशासकीय व्यवस्था में प्रत्येक विभाग में प्रशासकीय व्यवस्था का दायित्व ‘संगठन व प्रणाली संभाग’ पर होता है । उपसचिव स्तर का अधिकारी विभाग में इस स भाग पर नियन्त्रण रखता है । ‘केन्द्रीय संगठन व प्रणाली संभाग’ द्वारा विभिन्न विभागों में स्थित इस संभाग की इकाइयों पर नियन्त्रण स्थापित किया जाता है ।


संभाग की इन इकाइयों के अधिकारियों के मध्य परस्पर सम्पर्क बना रहता है । प्रत्येक संभाग का एक संचालक होता है तथा उसकी सहायतार्थ उप-संचालक व सहायक संचालक होते हैं भारत में ‘संगठन व प्रणाली संभाग’ सफलतापूर्वक कार्यरत है । ओ. एण्ड एम. ने मंत्रालयों एवं विभागों में अल्पधिक स्वच्छ वातावरण बनाये रखने के लिए 2005-06 के दौरान एक पुरस्कार योजना भी प्रारम्भ की है ।





Daily news

सेंसेक्स और निफ्टी 50 क्या है

  हमने पहले व्लाॅग में शेयर मार्केट के बारे में चर्चा की इस ब्लाॅग में हम जानेगें कि शेयर मार्केट में सेंसेक्स और निफ्टी क्या है  सेंसेक्स  ...

Most news