राष्ट्रीय हरित अधिकरण


राष्ट्रीय हरित अधिकरण


  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT) की स्थापना 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (National Green Tribunal Act), 2010 के तहत की गई थी।
  • NGT की स्थापना के साथ भारत एक विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण (Specialised Environmental Tribunal) स्थापित करने वाला दुनिया का तीसरा (और पहला विकासशील) देश बन गया। इससे पहले केवल ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में ही ऐसे किसी निकाय की स्थापना की गई थी।
  • NGT की स्थापना का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संबंधी मुद्दों का तेज़ी से निपटारा करना है, जिससे देश की अदालतों में लगे मुकदमों के बोझ को कुछ कम किया जा सके।
  • NGT का मुख्यालय दिल्ली में है, जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम के अनुसार, NGT के लिये यह अनिवार्य है कि उसके पास आने वाले पर्यावरण संबंधी मुद्दों का निपटारा 6 महीनों के भीतर हो जाए।

NGT की संरचना

  • NGT में अध्यक्ष, न्यायिक सदस्य और विशेषज्ञ सदस्य शामिल होते हैं, जिनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता है और किसी भी सदस्य को पुनः पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता।
  • अध्यक्ष की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
  • न्यायिक और विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति के लिये केंद्र सरकार द्वारा एक चयन समिति बनाई जाती है।
  • यह आवश्यक है कि अधिकरण में कम-से-कम 10 और अधिकतम 20 पूर्णकालिक न्यायिक सदस्य एवं विशेषज्ञ सदस्य हों।

शक्तियाँ और अधिकार क्षेत्र

अधिकरण का न्याय क्षेत्र बेहद विस्तृत है और यह उन सभी मामलों की सुनवाई कर सकता है जिनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण शामिल हो। इसमें पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों को लागू करना भी शामिल है।

  • एक वैधानिक निकाय होने के कारण NGT के पास अपीलीय क्षेत्राधिकार है और जिसके तहत वह सुनवाई कर सकता है।
  • नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure 1908) में उल्लिखित न्यायिक प्रक्रिया का पालन करने के लिये NGT बाध्य नहीं है।
  • किसी भी आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय को देते समय यह यह आवश्यक है कि NGT उस पर सतत् विकास (Sustainable Development), निवारक (Precautionary) और प्रदूषक भुगतान (Polluter Pays), आदि सिद्धांत लागू करे।
  • अधिकरण अपने आदेशानुसार...
    • पर्यावरण प्रदूषण या किसी अन्य पर्यावरणीय क्षति के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति प्रदान कर सकता है।
    • क्षतिग्रस्त संपत्तियों की बहाली अथवा उसका पुनर्निर्माण करवा सकता है।
  • NGT द्वारा दिए गए को आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय का निष्पादन न्यायालय के आदेश के रूप में करना होता है।
  • NGT अधिनियम में नियमों का पालन न करने पर दंड का प्रावधान भी किया गया है :
    • एक निश्चित समय के लिये कारावास जिसे अधिकतम 3 वर्षों के लिये बढ़ाया जा सकता है।
    • निश्चित आर्थिक दंड जिसे 10 करोड़ रुपए तक बढ़ाया जा सकता है।
    • कारावास और आर्थिक दंड दोनों।
  • NGT द्वारा दिये गए आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में 90 दिनों के भीतर अपील की जा सकती है।
  • NGT पर्यावरण से संबंधित 7 कानूनों के तहत नागरिक मामलों की सुनवाई कर सकता है:

1. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974

2. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977

3. वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980

4. वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981

5. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986

6. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986

7. जैव-विविधता अधिनियम, 2002

  • उपरोक्त कानूनों के तहत सरकार द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय को NGT के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।

NGT का महत्त्व

  • विगत वर्षों में NGT ने पर्यावरण के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और जंगलों में वनों की कटाई से लेकर अपशिष्ट प्रबंधन आदि के लिये सख्त आदेश पारित किये हैं।
  • NGT ने पर्यावरण के क्षेत्र में न्याय के लिये एक वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र (Alternative Dispute Resolution Mechanism) स्थापित करके नई दिशा प्रदान की है।
  • इससे उच्च न्यायालयों में पर्यावरण संबंधी मामलों का भार कम हुआ है।
  • पर्यावरण संबंधी मुद्दों को सुलझाने के लिये NGT एक अनौपचारिक, मितव्ययी एवं तेज़ी से काम करने वाला तंत्र है।
  • यह पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • चूँकि अधिकरण का कोई भी सदस्य पुनः नियुक्ति के योग्य नहीं होता है और इसीलिये वह बिना किसी भय के स्वतंत्रता-पूर्वक निर्णय सुना सकता है।

चुनौतियाँ

दो महत्त्वपूर्ण अधिनियमों [वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (Wildlife Protection Act, 1972) तथा अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी अधिनियम, 2006 (Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers Act, 2006)] को NGT के अधिकार-क्षेत्र से बाहर रखा गया है, लेकिन इससे कई बार NGT के काम-काज प्रभावित होता है, क्योंकि पर्यावरण से जुड़े कई मुद्दे इन अधिनियमों के अधीन आते हैं।

  • NGT के कई निर्णयों को उच्च न्यायालय में धारा 226 के तहत यह कहकर चुनौती दी जाती रही है कि उच्च न्यायालय एक संवैधानिक संस्था है, जबकि अधिकरण एक वैधानिक संस्था है। यह इस अधिनियम की सबसे बड़ी खामी है कि इसमें यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है कि किन मुकदमों को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है और किन को नहीं।
  • आर्थिक वृद्धि और विकास पर प्रभाव डालने के कारण NGT के निर्णयों की समय-समय पर आलोचना होती रहती है।
  • मुआवज़े के निर्धारण की कोई स्पष्ट विधि न होने के कारण भी अधिकरण आलोचना का शिकार हो जाता है।
  • NGT के लिये यह अनिवार्य है कि उसके अधीन जो भी मुकदमा आए उसका निपटारा 6 महीनों के भीतर हो जाना चाहिये, परंतु मानव और वित्तीय संसाधनों के अभाव में NGT ऐसा नहीं कर पाता है।
  • NGT का न्यायिक तंत्र भी सीमित संख्या में क्षेत्रीय पीठों (Regional Benches) के कारण बहुत अधिक प्रभावित होता है।

NGT के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय

  • वर्ष 2012 में स्टील निर्माता कंपनी POSCO ने इस्पात संयंत्र लगाने के लिये ओडिशा सरकार के साथ एक समझौता किया था, परंतु NGT ने इसे निरस्त कर दिया, क्योंकि यह समझौता आस-पास के ग्रामीण लोगों के हितों को प्रभावित करने वाला था। NGT के इस आदेश को स्थानीय समुदायों और जंगलों के लिये एक साहसी कदम माना गया।
  • वर्ष 2012 में ही एक अन्य मामले में NGT ने खुले में कचरा जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। इस निर्णय को भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से निपटने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक माना जाता है।
  • वर्ष 2013 में उत्तराखंड के मामले में NGT ने अलकनंदा हाइड्रो पावर लिमिटेड को यह आदेश दिया कि वह सभी याचिकाकर्त्ताओं को क्षतिपूर्ति दे। इस निर्णय में NGT ने प्रदूषक भुगतान (Polluter Pays) के सिद्धांत का पालन किया था।
  • वर्ष 2015 में NGT ने यह आदेश दिया था कि 10 वर्षों से अधिक पुराने सभी डीज़ल वाहनों को दिल्ली-NCR में चलने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
  • वर्ष 2017 में दिल्ली में यमुना के खादर में आयोजित आर्ट ऑफ लिविंग फेस्टिवल को पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन करते हुए पाया गया था, जिसके बाद NGT ने उस पर 5 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया था।
  • वर्ष 2017 में NGT ने दिल्ली में 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैग पर यह कहते हुए अंतरिम प्रतिबंध लगा दिया था कि इस प्रकार के प्लास्टिक बैग से जानवरों की मृत्यु हो रही है और पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है।

इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि बहुत कम समय में NGT ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है और पर्यावरण प्रहरी के रूप में अपनी एक अलग छवि निर्मित की है। इसके बावजूद देश में हो रही विकास गतिविधियों के साथ तालमेल स्थापित करके पर्यावरण संरक्षण हेतु NGT के दायरे को और अधिक विस्तृत करने की आवश्यकता है ताकि देश के विकास के साथ पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा किया जा सके।


पर्यावरण की स्थिति( आर्थिक समिक्षा 2022 )

 पर्यावरण की स्थिति


    आर्थिक समीक्षा में संरक्षण, पारिस्थितिक सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के साथ त्‍वरित आर्थिक विकास के साथ संतुलन के महत्‍व को रेखांकित किया गया है और यह निम्‍नलिखित क्षेत्रों पर ध्‍यान केन्द्रित करता है :  


भूमि वन

समीक्षा में बताया गया है कि पिछले एक दशक के दौरान भारत के वन क्षेत्र में उल्‍लेखनीय वृद्धि हुई है और वह वर्ष 2010 से 2020 के बीच वन क्षेत्र के औसत वार्षिक शुद्ध लाभ में वैश्विक स्‍तर पर तीसरे स्‍थान पर है। इसी समय,  2011 से 2021 के दौरान भारत के वन क्षेत्र में 3 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई। ऐसा मुख्‍यत: बहुत घने जंगलों में वृद्धि के कारण हुआ, जिनमें इस अवधि के दौरान 20 प्रतिशत तक वृद्धि हुई।


प्‍लास्टिक अवशिष्‍ट प्रबंधन तथा एकल उपयोग वाली प्‍लास्टिक

समीक्षा में प्रधानमंत्री की इस घोषणा को दोहराया गया है कि वर्ष 2022 तक भारत एकल उपयोग वाले प्‍लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्‍त कर देगा। इस मामले पर वैश्विक समुदाय द्वारा कदम उठाए जाने की आवश्‍यकता को स्‍वीकार करते हुए 2019 में आयोजित संयुक्‍त राष्‍ट्र पर्यावरण सभा में भारत ने एक प्रस्‍ताव- एकल उपयोग वाले प्‍लास्टिक उत्‍पादों से होने वाले प्रदूषण से निपटना पारित किया।


घरेलू स्‍तर पर प्‍लास्टिक अवशिष्‍ट प्रबंध संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित किया गया, जिसका उद्देश्‍य एकल उपयोग वाले प्‍लास्टिक को चरणबद्ध रूप से समाप्‍त करना है। प्‍लास्टिक पैकेजिंग हेतु विस्‍तारित उत्‍पादक उत्‍तरदायित्‍व पर विनियमन का मसौदा भी अधिसूचित किया गया। यह कदम प्‍लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्‍ट की सर्क्‍युलर अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूत करने, प्‍लास्टिक और टिकाऊ पैकेजिंग के नये विकल्‍पों के विकास को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया।


जल

भूजल संसाधन प्रबंधन और मूल्‍यांकन इस ओर संकेत करते हैं कि राज्‍यों/केन्‍द्रशासित प्रदेशों को पुनर्भरण, भूजल संसाधनों के अत्‍यधिक दोहन पर रोक लगाने सहित अपने भूजल संसाधनों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करने की आवश्‍यकता है। समीक्षा में उल्‍लेख किया गया है कि आकलनों में भारत के पश्चिमोत्‍तर और दक्षिणी भागों में भूजल संसाधनों के अत्‍यधिक दोहन की बात सामने आई है।


समीक्षा में कहा गया है कि मानसून के महीनों के दौरान जलाशय का लाइव भंडारण अपने चरम पर होता है और गर्मियों के महीनों में सबसे कम होता है। इसलिए जलाशयों के भंडारण, रिलीज और उपयोग की सावधानीपूर्वक योजना बनाने तथा समन्‍वय करने की आवश्‍यकता है।


नमामि गंगे मिशन की स्‍थापना के बाद से उसके अंतर्गत अनेक सीवेज अवसंरचना परियोजनाएं बनाए जाने को रेखांकित करते हुए आर्थिक समीक्षा में गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे स्थित अत्‍यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (जीपीआई) के अनुपालन में सुधार होने पर प्रकाश डाला गया है, जो 2017 में 39 प्रतिशत से 2020 में 81 प्रतिशत हो गया। अपशिष्‍ट निर्वहन में भी कमी आई है। यह 2017 के 349.13 एमएलडी से कम होकर 2020 में 280.20 एमएलडी हो गया।


वायु

देशभर में 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर सांद्रता में 20-30 प्रतिशत कटौती का लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार ने राष्‍ट्रीय स्‍वच्‍छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) शुरू किया था। समीक्षा में उल्‍लेख किया गया है कि यह कार्यक्रम 132 शहरों में लागू किया जा रहा है। समीक्षा में यह भी बताया गया है कि देश में विभिन्‍न स्रोतों से होने वाले वायु प्रदूषण पर काबू पाने और उसमें कमी लाने के लिए कई अन्‍य कदम भी उठाए जा रहे हैं, जिनमें वाहन से होने वाला उत्‍सर्जन, धूल और कचरे को जलाने से होने वाला प्रदूषण तथा परिवेषी वायु गुणवत्‍ता की निगरानी शामिल हैं।


भारत और जलवायु परिवर्तन


     भारत ने उत्‍सर्जन में कमी लाने के लिए 2015 में पेरिस समझौते के अंतर्गत अपना प्रथम राष्‍ट्रीय स्‍तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) घोषित किया और 2021 में 2030 तक हासिल किये जाने वाले महत्‍वकांक्षी लक्ष्‍यों की घोषणा की। समीक्षा में वन-वर्ड-मूवमेंट: लाइफ शुरू करने की आवश्‍यकता रेखांकित की गई है, जिसका आशय है पर्यावरण के लिए जीवन शैली, जो बिना सोचे-समझे और विनाशकारी खपत के स्‍थान पर सावधानीपूर्वक और सोद्देश्यीपूर्ण उपयोग का अनुरोध करती है।


समीक्षा में इस बात का कभी उल्‍लेख किया गया है कि भारत ने जलवायु के संबंध में अंतर्राष्‍ट्रीय सौर सहयोग (आईएसए), आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (सीडीआरआई) और उद्योग संक्रमण के लिए नेतृत्‍व समूह (लीड आईटी समूह) के अंतर्गत वैश्विक स्तर पर नेतृत्वकारी प्रदर्शन करता आ रहा है। वित्‍त मंत्रालय, आरबीआई और सेबी ने भी संधारणीय वित्‍त के क्षेत्र में कई कदम उठाए हैं।  



 


आर्थिक सर्वेक्षण 2022

            आर्थिक सर्वेक्षण 2022

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज आर्थिक सर्वेक्षण (economic survey) संसद में पेश कर दिया है. संसद में पेश हुए सर्वे के मुताबिक देश की अर्थव्यवस्था पर ओमिक्रॉन का खास असर नहीं पड़ा है और कोविड की तीसरी लहर के बावजूद अर्थव्यवस्था में रफ्तार (economic growth) बनी हुई है. इसी के साथ आने वाले समय में इंडस्ट्रियल एक्टिविटी (Industrial Growth) के भी रफ्तार पकड़ने की संभावनायें मजबूत हो गई हैं. वहीं एग्री सेक्टर का स्थिर प्रदर्शन आने वाले वित्त वर्ष में जारी रहने का अनुमान है. महंगाई के भी आने वाले समय में नियंत्रित रहने का अनुमान दिया गया है. कुल मिलाकर आज पेश हुआ आर्थिक सर्वे संकेत दे रहा है कि देश की अर्थव्यस्था महामारी के असर से निकल चुकी है और आगे बढ़ने के लिये तैयार है



क्या होता है आर्थिक सर्वे

इकोनॉमिक सर्वे देश की अर्थव्यवस्था का सालाना रिपोर्ट कार्ड होता है. इसमें अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टर का पूरे साल का प्रदर्शन दिया जाता है. इसके साथ ही पूरी अर्थव्यवस्था सहित सेक्टर को लेकर भविष्य को लेकर सभी योजनाएं भी सामने रखी जाती है. सर्वे में जीडीपी ग्रोथ का अनुमान भी सामने रखा जाता है. ये इकोनॉमिक सर्वे देश के नये सीईए वी अनंत नागेश्वरन का पहला आर्थिक सर्वे होगा. वहीं महामारी की वजह से सर्वे डिजिटल रूप में होगा. इकोनॉमिक सर्वे के दो हिस्से होते हैं. वहीं हर साल के आर्थिक सर्वे का एक विषय होता है. पिछले सर्वे पर रोजगार पर जोर था. पहला इकोनॉमिक सर्वे 1950-51 में पेश किया गया था. 1964 से इकोनॉमिक सर्वे बजट से एक दिन पहले पेश किया जाने लगा.

क्या है आर्थिक सर्वे का अनुमान

आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान दिया गया है कि अगले वित्त वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत से लेकर 8.5 प्रतिशत के बीच रफ्तार हासिल कर सकती है . वहीं इस साल अर्थव्यवस्था 9.2 प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ेगी. रिजर्व बैंक ने तीसरी लहर से पहले 9.5 प्रतिशत की ग्रोथ का अनुमान दिया था. आज आए आंकड़ें इससे कम हैं लेकिन अंतर बहुत ज्यादा नहीं है. इससे साफ संकेत है कि कोरोना की तीसरी लहर का अर्थव्यवस्था पर उतना गंभीर असर नहीं पड़ेगा जितना पहली दो लहर से पड़ा था. वहीं मौजूदा वित्त वर्ष में इंडस्ट्रियल सेक्टर की ग्रोथ सबसे ज्यादा रह सकती है. आर्थिक सर्वेक्षण का अनुमान है कि इंडस्ट्रियल सेक्टर में ग्रोथ 2021-22 में 11% रह सकती है. सेक्टर के ग्रोथ आंकड़ों में ये रफ्तार पिछले वित्त वर्ष के आई सुस्ती की वजह से देखने को मिला है. 2020-21 में इंडस्ट्रियल सेक्टर में 7 प्रतिशत की निगेटिव ग्रोथ थी. वहीं कृषि सेक्टर का स्थिर प्रदर्शन इस साल भी जारी रहेगा. सेक्टर 2021-22 में 3.9 प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ सकता है 2020-21 में एग्री सेक्टर में 3.6 प्रतिशत की ग्रोथ रही थी. वहीं सर्विस सेक्टर में 2021-22 में 8.2 प्रतिशत की ग्रोथ का अनुमान दिया गया है. पिछले साल ग्रोथ का ये आंकड़ा 8.6 प्रतिशत का था.




sin tax ( पाप कर क्या है )

 सिन टैक्स

सिन गुड्स (Sin Goods) वे वस्तुएं होती हैं, जिन्हें समाज के लिए हानिकारक माना जाता है। जैसे- शराब और तंबाकू, फास्ट फूड, कॉफी, चीनी, जुआ और पोर्नोग्राफी। इस प्रकार की वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर या टैक्स ‘सिन टैक्स’ (Sin Tax) कहलाता है।



यह टैक्स लोगों को सामाजिक रूप से हानिकारक गतिविधियों और व्यवहार में शामिल होने से रोकता है, लेकिन वे सरकारों के लिए राजस्व का एक स्रोत भी प्रदान करते हैं।


1. चर्चा का कारण


2. क्या होता है सिन टेक्स?

सिन] टैक्स (sin tax) एक प्रकार का उत्पाद कर (excise tax) है जो विशेष रूप से और व्यक्ति के लिए निकारक वस्तुओं पर जाती है उरण के लिए शराब, तम्बा

मिनटेक्स (sin tax) की अनिष्ट का और पाप कर के नाम से भी जाना जाता है।

भारतीय स के सबसे का प्रतिनिधित्व क कोकाकोलाको और रेड बुल शामिल है, ने जीएसटी परिष ओंकटेक्स) श्रेणी से हटाने को कहा है।

●ा 'जीएसटी' (GST) में शराब कोला (Cola) आदि जैसे के नजरिये से हानिकारक या स्वास्थ्य के हिसाब से नुकसान उत्पादों पर नि Tax) लगाया जाता है।

3. क्या है जीएसटी?

>तु एवं सेवा कर), भारत में लागू एकअरजुलाई

2017 को किया गया था।

इसकर और राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले तमाम को कोटाकर पूरे देश के लिए एक ही कर प्रणाली की गई है।

भारतीय संविधान में इस करव्यको लागू करने के लिए 101 वीं संशोधन किया ग सरकार में कई शारों ने इसे आजारी के बाद सबसे महाआर्थिक सुधार बताया है।

4. जीएसटी परिषद

करीत जीएसटी परिषद (Goods and Services Tax-GST Council

एक मुख्य निर्णय लेने की है, जो कि जीएसटी कानून के अंतर्गत होने वाले कार्या

के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लेती है।

101ोधन अधिनियम में संविधान में अनुच्छेद 279ोगा तु एका को लागू करने के लिए जीएसटी परिषर के गठन को न कही गयी है।

5. जीएसटी परिषद का गठन व क्रियान्वयन

परिषद केंद्र और राज्यों के लिए एक संयुक्त होता है इसमें निम्नलिखित सदस्य होते है

● ●के रूप में मंत्री)

>प्रत्येक राज्य और दिल्ली पुडुचेरी एवं जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेशों के वित्त या करायन के प्रभारी मंत्री या सवय के रूप में नामित कोई अन्य महे।

●जीएसटी परिषद का प्रत्येक निर्णय बैठक में कुल उपस्थित सदस्यों के 34 के बहुमत (759) में मतदान करने के बाद लिया जाता है।

बैठक में कुल डालेगम के 13 हिस्से का मूल्य केंद्र सरकार के कामी राज्य सरकारों का एक साथ मिलकर कुल मती का मूल्य 2/3 माना जाता है।

जीएसटी परिषद के सदस्यों की कुल संख्या में से आधे के साथ बैठकों का कोरम गठित होता है।

AA गौरतलब है कि जीएसटी परिषद सहकारी संवाद का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जहाँ केंद्र और राज्यों दोनों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।


K-आकार का आर्थिक सुधार क्या है


 - 2021 के नवीनतम दौर के अनुसार K-आकार की म.     रिकवरी कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित                अर्थव्यवस्था से उभर कर सामने आई |

- यह सर्वेक्षण मुंबई में स्थित थिंक टैंक पीपुल्स रिसर्च     आॅन इंडियाज कज्यूमर इकोनॉमी (PRICE) द्वारा   किया गया




- एक तरफ टेक्नोलॉजी और आॅनलाइन कार्य वालो        को कोरोना में फायदा हुआ और दूसरी तरफ                 लोकडाउन लगने से अनेक मीडियम लोगों को नुकसान   हुआ


                                    Raguram Rajan

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सेंसेक्स और निफ्टी 50 क्या है

  हमने पहले व्लाॅग में शेयर मार्केट के बारे में चर्चा की इस ब्लाॅग में हम जानेगें कि शेयर मार्केट में सेंसेक्स और निफ्टी क्या है  सेंसेक्स  ...

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